डेरा ओ देउता

डेरा ओ देउता

१०१४ दिन अगाडि

|

१७ मंसिर २०७९

लाल आयोग प्रतिवेदन काहे गुपचुप ?

लाल आयोग प्रतिवेदन काहे गुपचुप ?

१०२१ दिन अगाडि

|

१० मंसिर २०७९

मोती रत्न   का हाे यी लाल आयोग प्रतिवेदन ? बटाई सँघारी- यी खुनसे रङ्गल बा, टबे साइट, यिही लाल प्रतिवेदन कठ। नै ! गाेचाली। बिलकुल अत्रे किल नै ! शान्तिपूर्ण आन्दोलनमे घुस पैठ व ज्यादतीक सच बात हाे। १८ महिनक बँच्चक चित्कार हाे, निर्दाेषके बाेल हाे, करिया चद्रीले छाेपल सच हाे, सरकारी गाेलीक काला पाेल हाे, गिरिशचन्द्र लालके यी बाेल हाे। १४ महिना लागल, ७ सय ९ पेजके गद्दारीकके झाेल हाे। शेरके बिरुद्धमे बाेलल यी सच बाेल हाे। सचहे नुकाके झुठ सरकारके यी राेल हाे। टबेमारे  आजसम  गुपचुप बा, अभिन अध्ययन हुइटी बा, गृहके अध्ययन, प्रधानमन्त्रीक कार्यालयक अध्ययन, महि लागट ७ सय पेज अध्ययन कर्ना ७ बरस लाग गिल काहुँ ? अभिन अध्ययन हुइटा, अभिन ९ पेज बाँकी बा ? असिक पह्रलेसे  काेई आज डा.के उपाधि पा डारठ काहुँ ? कृपया स्पष्ट करदेउ, काैन सरकार अट्रा अध्ययन करले बा, टीकापुरबासी उहिह डा.के उपाधि डेहे सेकी? सचहे उल्टाके झुठमे डा.उपाधि पवुइया ? जुट्टक मालासे बधाई डेना चाहटै जनता ! ढुरमाटीम मिलैना इनाम डेना चाहटै जनता! जैसिके पुलिस व प्रशासनके संरक्षणमे जान जानके, कर्फू लग्वाके, उ डा. उपाधि पवुइया सरकारकेमे आगि लगैना चाहटै जनता ! टाेरफाेर कर्ना चाहटै जनता ! इज्जट लुट्ना चाहटै जनता ! बर्बर व निरङ्कुश सरकारके छाटि चिरना चाहटै जनता ! सुरक्षा निकायके भुमिका बिषयमे सिखैना चाहटै जनता ! घुसपैठ व ज्यादतिमे  मुकदर्शक हुइल, सरकारक मुह बवैना चाहटै जनता ! टबेमार  नस्लबादीन सुनाे ! अवसरवादीन सुनाे ! २०७४ मंसिर २९ गते देउवा प्रधानमन्त्रीहे बुझाइल प्रतिवेदन, २०७४ पुस १३ गते प्रधानमन्त्री कार्यालयमे बुझाइल प्रतिवेदन काहे आजसम गोप्य बा ? काहे की यी लाल प्रतिवेदन सरकारके बारेमे गम्भीर आरोप लगाइल बा, १८ महिनक बँच्चहे पुलिसनके गोलि लागल कहट, कर्फू लगाके  पुलिस व प्रशासनके संरक्षणमे थारुनके घरम लागि लगाइल कहट, चेलिनके इज्जट लुटगिल कहट, अपराधिनहे नै पकरके जान जानके अपन जिम्मा नै निभाइल प्रशासन अधिकृतहे कार्बाही करे कहट, रेशम चाैधरी लगायट राजबन्दिन घटना क्षेत्रमे नै रहल डेखाइट। दाेषी सरकारहे डेखाइट ? दाेषि पुलिस व प्रशासनहे डेखाइट ? अट्रा बुझ्टी-बुझ्टी बेबुझ सरकार ? डेख्टी जा ! यी चुनावमे टाेर पट्टा काट डेब, टुहि ढुरमाटिम मिला डेब, काहे की हमार बाेटसे टै कुर्सी पैले, टाेर कुर्सी ढला डेब। पावर वरा डेब। चिम्टा कमन्डल लेले भिखारी बना डेब। काखरे की टाेर खैना व डेखैना डाँट सबजे चिहिन रख्लै, लिम्बुवान से लेके खम्बुवान, थारुवान, नेवा, हाे ! आब टाेर खैरियट नै हाे ।

  मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

  मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

१०३४ दिन अगाडि

|

२७ कात्तिक २०७९

हुक्र मुअल इतिहास बेँच्क सिंहदरबार छिर्ठ टुँ फे हुकनक बाटम् भुल्ठो कमैया मुक्त घोषणा के करल ? बुर्हाइल मनैन भत्ता के डिहाइल रु मलिक्वन्हँक बेगारि के कर छुटाइल ? टुहाँर मनम् म्वार मनम् बुडिक फोटु आइअस झलल आइठ् एक्ठो फोटुँ हमा बारिमक न झोङ्ल्यार बुबक लगाइल  बम्मइ आमक रुख्वा बरघरान घरक डख्खिनसे उठ्ठि रहल  लल्छार डिन कम्ड ठेरिक सौँठ्यारि धान कट्ना चोख्खुर रेँटिक हँस्या ओ ठुँठ हँस्य कचोट्ना बरनक उह ठोक्या मै एक्ठो बाट पुछु कैह्यासम टुहाँर मनम् इह फोटु अउइया बा ? एक्चो डिउर्हार कोन्टि जाऊ पटाहा डेर्हिम हेरो उहाँ डेख्बो बुडिक बिनल ढक्या एक्चो भिट्टर जाऊ  उहाँ डेख्बो चाउर ढरल डाईक आनल भोजाहा ढक्या एक्चो भौँका छोरो उहाँ डेख्बो भौँक छ्वापल आजिक बिनल पन्ह्वाँ ढक्या एक्चो बगर्वम जाऊ  बुसि ढरल डेख्बो काकिक बिनल ढक्या टुहाँर  आजिक बुडिक डाईक काकिक बिनल ढक्यम् टुहाँर नाट पाटन्के पस्ना बहल बा आप टुहाँर डुख ढक्या बोकि टुहिन सुख ढक्या डि उहमार मंसिर म  धान ओसाए जाइबेर टुँ ढक्या बोक्क जिहो....।  

बटकुहिः अन्टिम सास

बटकुहिः अन्टिम सास

१०७२ दिन अगाडि

|

२० असोज २०७९

भिटामे क्यालेन्डर बरे आरामसे झुरल बा । केने अक्को ठकाइ नै लग्ठिस काहुन उहि । जबकि बिन नै औरे बरस पुग्ले उ अक्को बिसाइ नै पाइठ । मै जुन रत्नपार्कसे कीर्तिपुर टक हायसमे झुरके अइलुँ टे सास उटमुटाइ हस हु जाइटुहुँ । बाब्बा रे बाब्बा मनै कौन मेर हुइट । नेपाल भरिक सक्कु मनै इहे राजधानी आके ठेंग्रलहस । बल्ले टल्ले झुरे भर मिलल् रहे । असिन भिर रहठ कहिके जन्ले रटुँ टे के जाने पहिलेहे बजार जाके सौडा किन्ले रटुँ ।  आघे पाछे भर मनै लावा लुग्गा नै घल्ठा काहुन । हुइना टे इहे डसियक बेला टे हो । इहे मौका पारके टे सुग्घुर लगैबो, मिठ खैबो ओ सक्कुहुनसे भेटघाट कैबो । हुइना टे मौसिं एक महिनासे अगहि जनैले रहिंट, कन्छि महि पाटिर ओटिर सुइटर ओ बाबुक टन फराक नानडेहो । लमही ठोरिक नै सुग्घुर मिलठ कहिके । महि जो बिसरैले रहुँ । सायड  क्यालेन्डर हेरे बिस्रैले रहुँ, डसिया हिटिक राखल कना मोर मनेम रबे नै करे । सामान्य नजरले क्यालेन्डर हेरे बेर डसियक लाल घेरा प्रस्टसे बिल्गाए मने भिटरि मनक नजरसे हेरे बेर उ लाल घेरा फेन बिल्कुल ढुमिल हुजाए, फट्टिक ढुमिल ।      डसियामे असौं हम्रे घरे नैजैना मनसाय बनैले रहि । मै किल भर्खर काल्ह घरे देउखर  जैना बाट निस्चिट हुइल रहे । डाइ बाबा कहलाँ, ‘असौं डसियक टिका नैलगैलेसे फेन भेटे हस टुँ भर चलजाउ । नै टे सालो सालो सक्कु जाने डसियम घरे गैलक असौं केउ नै जाबि टे भोहर लग्हिन ।’ मै बिना मनक अइठिर गोंइठिर हुके जैम कले रहुँ । बुवा महा ढिला टिकट कटाइ गैलक ओरस बरे मुस्किलसे कियक पछिल्कि सिट मिलल् रहे । आघे पाछे भर मनै लावा लुग्गा नै घल्ठा काहुन । हुइना टे इहे डसियक बेला टे हो । इहे मौका पारके टे सुग्घुर लगैबो, मिठ खैबो ओ सक्कुहुनसे भेटघाट कैबो । बढिमे एक अठवार किल बसाइ हुइलक ओरसे सामान ढेउर नै रहे मोर । उहे मारे बुवा महि काल्हि जनैले रहिंट, मोटरसाइकिलमे कलंकीसम छोरडेना । निक्रे बेर डाइ घनु घनु उहे कहटिहि–‘मजासे जाइस कन्छि । पुगके फोन करिस ना ।’  ममिक चिट्ट नै बुझके टरे सम पठाइ अइलि । मै पहिला बार अक्केलि घरे जाइटुहुँ । नियम अनुसार टे आब अकेलि कुल घरे जैनाहा हु गैलुँ कहिके खुस हुइना चाहि मै । लकिन डुख यि बाट समझके लागटेहे कि अपन परिवारसे फोंहैटि घरे जैना फेन उ डिन कहिया आइ कहिके ।   मोर मनेम खेलल् हजार मेरिक बाट रफ्टारमे रहे कि बुवक मोटरसाइकिलिक स्पिड । एकफाले कलंकीक पुल पुग्के पटा चलल, कलंकी पुगचुक्लि कहिके । उ फेन गाडिक टिंटिंट टुंटुंटले । पुरे वाटावरनहे कनफोर बनैले रहे उ आवाज । मनैन् किल नाहि पुरे सडकहे कनबहिर बनैना मेरके गाडि चिल्लाइ भिरल रहिंट । जानो गाडि–गाडि बिच कौनो प्रटिस्पर्ढा हुइटा ।  बाबा पेट्रोल पम्प पुग्के बुवा मोटरसाइकिल रोक्ला । हमरे गाडिक अस्रा लग्लि । सवा ६ बजेक गाडि साट बज्लो पर फेन नै आइल । नेपालि टाइम कैहके ओस्टे कहाँ कैहगैल बा झे । सवा साट बजे बल्ले गाडि डेखा परल । बुवा महि मजासे चिहुराइ नैपइटि नेंगे लागल  गाडि । सेवाढोक फेन नै लागे पैलुँ बुवाहे । ठोठोर चल्टि गाडिम सिउरे परल रहे महि । खलसिया कहटेहे, ‘छिटो चढ्नुस, अहिले यहाँ रोक्यो भने ट्राफिकले लाइसेन लिन्छ ।’  मोर मनेम खेलल् हजार मेरिक बाट रफ्टारमे रहे कि बुवक मोटरसाइकिलिक स्पिड । एकफाले कलंकीक पुल पुग्के पटा चलल, कलंकी पुगचुक्लि कहिके । उ फेन गाडिक टिंटिंट टुंटुंटले । मै हुटमुटैटि पछिल्कि सिटमे बैठे गैलुँ । चार जाने मनै पहिलेहे बैठ रख्ले रहिंट । ओम्मेहे अटेस मटेस हुके चार जहनके बिच्चे बिच बैठे परल महि । मै जानटुहुँ चार जहनके सिटमे पाँच जहन जरुर बैठ्वाइ कहिके । यल उहे हुइल ।  मजासे बैठे फेन नै पैले रहुँ । एक्कासि एकठो आवाज मोर कानेम परल । कहुँसे अइलक आवाज नै रहे उ । गाडिम बज्टि रलक गिट रहे । नारायण गोपालके उहे गिट जब जब बाजेक याड आए, टब टब सुनुँ । ‘दुइटा फूल देउरालीमा... ।’  फुरे महा सुग्घुरसे गाइट बाजटहे गिट । टबे टे बाजेहे सक्कु जाने देउखरके नारायण गोपाल कहिन् । आघे पाछे सुन्टि रना उ गिट । आझ सुनेबेर बरा अनखोहर लागटेहे महि । कब ओराइ कना मेरके ।  गिट ओरैनासे पहिले गाडि मन्के डिगमिगवाइ हस लागे लागल महि । सडक खोल्टा खोल्टि टे रबे कर,े मने यि बेला गाडि नाहि मोर मन ओ मस्टिस्क डिगमिगाइटेहे । अन्टाज लगैना हो कलेसे टे किया गाडिक चक्काले मोर डिमागके चक्का बरा टेजले घुम्ना सुरु करे लागलहे फनफन फनफन । अट्रा जोरसे फनफनाइल कि महि सिढे असार डुइक घटनामे लैगैल । २०७४ असार २ मोर जिन्गिक कबो नै बिसरैना डिन । सुक्रबारके डिन । हम्रे सक्कु जाने बेरि खाइ बैठल रहि । डाइ खाना खौक्ना सुरु फेन नैकैले रहिट । यल टब्बेहे बुवक मोबाइलके घन्टि बज्लिन । फोन घरेसे आइल रहे अंकलके । केने अंकल का कलाँ । बुवक अनुहार एकाएक अन्ढार हु गैलिन् । अब्बे बर्टि रलक डिया एकफाले झमझमसे बुटलहस । बुवक अनुहार डेख्के हम्रिहिन पटा चलगैल पक्के कुछु नैमजा समाचार आइल बा ।  डाइ पुछक खोज्लि । बुवा एक घचिक टे टारे मुरि लगैले झोंकरैले रैहगैला, कुछु नै बोल्ला । पुस माघके जारेमे ठेठ्राइल हस बर्बट्टि ठर्ठरैटि कहलाँ, ‘कन्छु, बाजे आब हमार ठेन नै हुइट ।’ फोन घरेसे आइल रहे अंकलके । केने अंकल का कलाँ । बुवक अनुहार एकाएक अन्ढार हु गैलिन् । अब्बे बर्टि रलक डिया एकफाले झमझमसे बुटलहस । बुवक अनुहार डेख्के हम्रिहिन पटा चलगैल पक्के कुछु नैमजा समाचार आइल बा । हम्रिहिन सक्कुजहन यि खबरले स्टब्ढ बनाइल । बेरि बिना खैले उठ्गैलि हम्रे । महि अभिन विस्वास नैलागटेहे । बाजे इहे अइना चुनावमे उठल रहिंट । दमके रोगि रहिट उहाँ । सारिस्सा डवाइ खाइ पर्ना । प्रचार प्रसारमे लागके खैना पिनक ठेकान नैरहिन । डौरढुप हु गैलिन् । मुख्य कारन उहे रेहे, बाजेहे टाइममे अस्पटाल नै लैगैलक ।  हम्रे हड्बडैटि गृहजिल्ला दाङदेउखर जाइक टन सामान मिलाइ लग्लि । राट हुइलक कारन टेक्सि खोजे जैना अवस्ठा फेन नै रहे । बुवा फोन कैके सिताराम अंकल ओ प्रसादु अंकलहे बलैला कलंकीसम बाइकमन छोरडेहक टन । सायड राट डस बज गैल रहे कलंकी पुगेबेर । दाङ ओर जैना गाडि सक्कु छुट रख्ले रहे । उहे मारे हमरे भैरहवासम जैना जट लास्टक गाडिम सिंउरलि । ठन्चे कुल ढिला हुजाइट टे उहो गाडि छुट्ना ढन्ढा हो जाइट । सिट नै रहे । उहेमारे बुनु डिडि मुरामे ओ बाँकि बुवा, ममि, जुनु डिडि ओ मै बोनटमे बैठ्लि । गाडि एक डेग फेन नै चले पैले रहे । पानिक रुवाइ सुरु हु गैलिस् । हाँ, फुरे उ डिन पानि फेन सोक मनाइटेहे । गाडि झ्यापसे ब्रेक लगाइल । मै एकफाले झस्कलुँ । मनेम टे जाम रबे कर,े पुरे जाम हुके बैठल । लकिन डगरिक जाम खुलल ओरसे डइबरवा मन्के मचाइटेहे गाडि । आझ टे नागढुंगा नांग्घके अइना टरका खल्हैया केने कब कटल पटै नै पैलुँ । एकटकले मै गाडि मनसे उप्पर बिल्गैलक पहाड हेरटु ओ टारे बहटि रलक त्रिशुली लडियाहे । मै टे हप्टा डिन रैहके देउखरसे काठमान्डु घुमजैम । मने उ पानि ? एकचो बहि टे कब्बो नै घुम्के आइ । कट्ना हलि आझ गाडि कुरिनटार पुगा ढारल । लाइन लग्ले केबुलकार झुरल प्रस्टसे बिल्गटा गाडिक भिट्टरसे फेन । केबुलकार सिर्फ टारक भरेमे ओहोर डोहोर करटेहे । हमार जिन्गि फेन सायड ओस्टे टे हो एकठो डोरियक भरमे । डोरिया छिंगटल टे छिंगुट गैल ।  जाम्हि टम्मेहेसे आइटा । आँख टुमक खोज्टु । टबोपर अक्को निन्ड नै आइठो । केने कब आँख टुम्लु मुग्लिन पुग्के खुलल । गाडि बाउँ पाजरसे मोरल । डाहिन पोखरा जैना डगर लागल रहे । उहे डगर टे हो जब बुवा ओ मै बाजेक भाट ओरवाके आइबेर नारायणगढ–मुग्लिन सडक पहिरोले बिस्टार हुइल बेला पाल्पा, स्याङ्जा, तनहुँ हुइटि निकरल रहे गाडि । बुडि ओ मै आइबेर यसके रोइले रहि । बुडि रोइटि पुछ्ले रहिट टबे, ‘आब कबो नै अइबे बाबु घरे ?’ मै कुछ बोल्हि नै सेक्लु । बेन आँसक खोल्हुवा बहे लागल रहे ।  ..........      डुनु पाँजरसे डबोट्वा पाके हुइ सिटमे अक्को सनस पटल नै लागटेहे । बर्बट्टि कुल निडाइक खोज्लुँ । अपसिर टे महा गहिरसे निडा गैलु काहुन । एकफाले खाना खैना ठाउँ देवदह गाडि पुगाइल टे जग्लु । मोबाइल चेक कैलुँ । डाइक डस मिसकल आ रख्ले रहे । फोन टुरुन्टे लगैलुँ । उहाँ गरियाइ हस कैलि । मै आब फोन उठैम कहिके जनैलुँ ।   गाडि मनसे उटरके डाइक ढैडेहल भुठल भाट खैलँु । आझ गाडिक स्पिड टेज रहिस् कि महि घरे पुग्ना कौनो हटार नैहुके हो । महा हलि पुगाइहस लागटेहे । हलि पुगाइ टे बेन मौसिन घर लमही बजारसे यहोरे अर्नहवा गाउँ नैजाके सरासर अपन घर घुम्ना गाउँ जैना सोच बनाइटुहुँ ।  मोबाइल चेक कैलुँ । डाइक डस मिसकल आ रख्ले रहे । फोन टुरुन्टे लगैलुँ । उहाँ गरियाइ हस कैलि । मै आब फोन उठैम कहिके जनैलुँ ।  मने मौसिक छाइ कान्छि नानी झबाझब फोन कैके हमार यहाँ उटरे परि कहिके घोस्ले रहिंट । हुइना टे काठमान्डुसे जाइबेर जहिया फेन हम्रे ओहरे उटरि । मौसिनके घर सडके टिर हुइलक ओरसे राटके कुल पुगाए टे उटर्ना सजिल लागे । आझ फेन उहे उटरना जो योजना बनैले रहुँ । लकिन मौसम बडले हस मोर योजना फेन बडल गैल । आब सरासर घुम्ना जैना ।  भालुबाङ पुग्के अंकलहे फोन लगैले रहँु बनगाँवा चोकमे लेहे अइहो कहिके । ओ टब्बेहे सरासर घुम्ना जैना बाट जनैले रहुँ । भैया ओ कान्छि नानिहे । मनके रिसाइटिहिंट लर्का, आब डिडिसे कब्बो नै बोलब् कहिके ।  गाडिमनसे उटरलु टे अंकल मोरे अस्रा लागल रहिट । अपने पंजरे ठरहुवइले रहिट मोटरसाइकिल । हुइना टे हमार गाउँ आब चैलाहि गाविससे लमही नगरपालिका बनराखल । टौनो गाउँक हाल हेर्ना हो कलेसे अभिन उहे बा । मामान घर कुल जैबो टे अटो अंगनासम पुगाडेहठ, गाडि । हमार गाउँ महा भिट्टर हुइलक ओरसे हो कि का अटो फेन जाइक मन नै करठ । गाडि चल्ना टे डुरके बाट । मोटरसाइकिल रहुइयन मोटरसाइकिलमे, साइकिल रहुइयन साइकिलमे नै टे पैडल नेंगके पुगे परठ हमार गाउँ । घुम्ना गाउँकु नाउँ हस मन्के घुमे परठ गाउँ जाइबेर । एक टे सरिर ओस्टे हुलमुलाइल लागटेहे । गिट्टि बिछाइल डगरके हुके आउर जोर हिल्मिलाइटेहे बाइक । ओस्टक हिल्मिलैटि पुग् रख्ले रहि बनगाँवा स्कुल । बुवनके पहिले पह्रल स्कुल ओ अझकल अंकल ओ बरापुक पहै्रना स्कुल । बुवा फेन पत्रकार नैहुके इहें मास्टर बनल रटाँ टे सायड काठमान्डुक अनुहार डेखे नै मिलट । सायड जहिया फेन अपन गाउँक अनुहार किल हेरके चिट्ट बुझाइ परट ।  बरसमे एक फेरा किल गैलक ओरसे हो कि का गाउँक ओ मोर कौनो आट्मियटा रलक महसुस नै हुइठ । महि अभिन फेन याड बा, एकचो बुडिक संगे नेंगेबेर मोरे गाउँक मनै महि ‘यि के हुइट ?’ कैहके पुछ्लक । छिटि रहुँ टे कबो जबो मोर संगे खेले अउइया संघरियन आब टे भोज कैके लर्का फेन पा रख्ला । का जिन्गि इहे हो, भोज कैना ओ लर्का किल पैना ?  छिटि रहुँ टे कबो जबो मोर संगे खेले अउइया संघरियन आब टे भोज कैके लर्का फेन पा रख्ला । का जिन्गि इहे हो, भोज कैना ओ लर्का किल पैना ?  गाउँ फुरे छुछ्छे बिल्गाइटा । बिना बाजेक गाउँ । सुनसान । अंकल अंगनम पुग्के बाइक रोक्ला । बाजे कैहके चिल्लैटि जैनास मन लागटेहे । हमार घरक भिटम लिखल ‘जय गुरुदेव’ बरा सोहावन बिल्गाइटेहे । हमार बाजेक लिखल अच्छर रहे । ओठ्ठे पुग्टि साइट उ अच्छरहे सुमसुमैलु । बाजे बाँसक कलमहे मसिम बुराके कम्प्युटरमे छापल हस महा सुग्घुर अच्छर बनाइट । बाजेक संगे बाँसक कलमसे लिखक् सिख्ना मौके नै मिलल महि । आब कब्बो फेन नै मिलि ।   बुडि महि डेख्के फोहैलि । बिचारि बाजे बिना बुडि ओट्रा टिन महिनामे झुरागैल रहिट । मै उप्पर कोन्टिम जैनासे पहिले मोर नजर पोर सालिक डसियम टिका लगैलक ठाउँ हेर मारल । उहे ठाउँ जहाँ मै बाजेकसंगे आसिर्वाड लेटि टिका लगैले रहुँ । असौं टे लिल्हार फेन छुछ्छे रहि । इहे ठाउँमे बैठके बाजे महि सुनैले रहिंट गिट ‘पानी जस्तो बग्ने माया सलल बगेर गैजाला ।’ सायड गिटक लिरिक्स गल्टि रहे । ‘पानी जस्तो बग्ने जीवन सलल बगेर सलल बगेर गैजाला’ हुइना चाहि । फुरे बाजे कहाँ पुहके गैगैला । जहाँ पुहलेसे फेन बाजे हमारे ठेन कब्बु किनारा नै लग्हि । ओ मै फेन टे सुनैले रहुँ बाजेहे तारादेवीक गिट, ‘शुभकामना भरि हरेक स्वासमा तिम्रो दीर्घायुको कामना गर्न सकुँ म ।’ बाजे महि माफ कैडेहो, टोहार अन्टिम सासमे फेन मै डिर्घायुक सुभकामना डेहे नै सेक्लुँ ।  बिहान, २०७५ से ।                                                   

खिस्साः डसैंह्या जरावर

खिस्साः डसैंह्या जरावर

१०७३ दिन अगाडि

|

१९ असोज २०७९

दिपक चौधरी ‘असीम’ श्याम लाल कपार पकर्ले ओसरह्वाम बैठल रहे । मनमे कुछ सोंच्टि मन लेले लम्मा साँस लेहल ओ टुटल खट्यामे ‘हुस’ कैह्के सुट्गैल । ओहे समयमे जन्नि भाँरा बर्टन ढोके अइलिस् ओ कहलिस्– ‘का हुइटा हो बड्डो ? हुस कर्टि सुटटो बरा सोंच परल हस ।’  –‘अरि का हुइ ? सोंचटु कहाँ जाके पस्ना बहैना हो टे ढेर रुप्या आइ । यहाँ टे जट्रा पस्ना बहाव खैहिं भरिक् ठिक्क हुइट् । लर्कन डसैंह्या जरावर फे डेहे नै सेक्जाइठ । काल्ह ढिक्रह्वा हो सक्कु जहनके लर्का लावा लावा झुल्वा घल्हिन, हमार लर्का टे ओहे पुराने लुग्गा घलहिं । बर्का छावा टे भारि होगिल बा, समझ जाइट । छुटकि फेर जिउ जारि,’ कहटि कहटि आँखिसे आँस बहगैलिस श्याम लालके ।  श्याम लालके मनहे ढिर्खा बँढैटि जन्नि कहलिस, ‘असौं नै सेक्लि टे का पोर साल डेब टे काहुन् । टुँ छोट मन का करे कैठो ?’  –‘सालो सालो ओहे बाट कना ठिक नै हो बड्डि । लर्कन सब बाट याड रठिन । कहाँ सम झुठ झुठ बोल बोलके ठग्बे । बरु डस्या मानि ओ मै कहुँ कहुँ कमाइ जाउँ,’ कहल श्याम लाल ।  –‘लेउ लेउ चल्जिजहो, मै जसिक टसिक घर हेर डारम् । अब ढेर ना सोंचो,’ कह्टि सम्झैलिस्, श्याम लालके जन्नि ।  ओइने डस्या भलमन मनैल । डस्या फे ओराइल ।  ..... आझ श्याम लाल झोला झम्पट् लेले आनक डेस भारतमे चलल् रुप्या कमाइ ।  श्याम लाल राटडिन मेहनट कर्के पस्ना बहा बहाके भुख्ले प्यासे रैह् रैह्के कुछ रुप्या कमाइल । आउर डोसर बरस डस्या मनाइ अपन घरे आइ लागल ।  लर्कन लग भुजा गुडा ओ लावा लावा लुग्रा झोलम लेले रेलमे बैठके आइटहे ।  राटके श्याम लाल डुइठो रोटी हाँठम् लेले खाइटहे । टब्बे एकठो बज्या लग्गे आके कलिस, ‘भैया सुख्खा रोटी क्यों खा रहे हो । ए लो, आलु टमाटर कि सब्जी ।’ राटके श्याम लाल डुइठो रोटी हाँठम् लेले खाइटहे । टब्बे एकठो बज्या लग्गे आके कलिस, ‘भैया सुख्खा रोटी क्यों खा रहे हो । ए लो, आलु टमाटर कि सब्जी ।’ श्याम लालके फे सुख्ले खा नै जाइटहिस् । उ बज्यक् डेहल टिना रोटी संगे खाके सुट्गिल ।  जब श्याम लाल निडाइल, टब बज्या श्याम लालके झोला लेके डोसर डब्बम जाके बैठ्गैल । जब डोसर स्टेसन आइल, टब बज्या रेलमसे उटर गैल ।  श्याम लालके कुछ पटै नै हुइस । उ सुट्लेक सुटले बा । अपन उटर्ना स्टेसन अइलक् फे पटा नै हुइस ।  जब उ जागल टे अपनठें अपन झोला नै हुइस । एहोंर ओहोंर खोजल । आँजर पाँजरके बाजिन् पुछल । सक्कु जे पटा नहीं कैह्डेलिस । स्टेसन आइल । रेल रुकल, उ रेलमसे उटरल । अपनहे बिल्कु अन्जान ठाउँमे पाइल ।  बाजिन्से पुछल अपन उट्रना स्टेसनके नाउँ । टे बाजि कहलिस, ओ टो पिछे छुट् गया । तुम तीन टेसन आगे आ गए । आप ऐसा करो अभि एक ट्रेन आएगा । उसमे बैठ्के आप पिछे चले जाउ । उ ओस्टेक करल ओ जसिक टसिक भग्भुन्डारे भग्भुन्डार अपन घरे पुगल ।  जन्नि पुछ्लिस, खै टे झोला बा, उहाँ लर्का डसैंह्या जरावरके अस्रम् बटै ।  अट्रा बाट जन्नि पुछ्टि किल श्याम लाल रोइ लागल । रुइटि कहल, ‘मोर  कमाइल रुप्या पस्ना बहे हस बह्गैल बड्डि । बजिया झोला चोरा लेहल । हमार जिन्गिम् सुख नैहो, डुख केल भरल बा । (उहे बिचेम् गिट बजे लागल) मेहनट कर्के फराइरल उ रुप्या बह्गैल प्यारि ।  सुखके खोजिम कमाइल उ रुप्या बह्गैल प्यारि  डिन राट एक्के समझ्के भुखले प्यासे रैह् रैह्के,  एक एक पैंसा बचाइल उ रुप्या बह्गैल प्यारि ।  फेरसे ओहे हालमे सुख डुख अपन परिवार संग डस्या मनाइल श्याम लाल ।  कैलारी–२, बसौटी, कैलाली