अइ थारु !
का टुँ पान्डन हुइटो
जठर चोख्खुर कुह्रारिले
चिर्लसे ना चिर्जिठो,
जठर चोखुुर गर्सले
ठक्किलसे ना ठप्काजिठो ।
टुहिन,
राज्य नस्से चिरठ
नस्लके लुहाकिक कुह्रारिले
टुहिन,
राज्य नस्से ठप्काइठ
शोषण, अन्याय व अत्याचारके गर्सले ।
टुँ,
दाङसे ढल्क बुह्रान पुग्ठो
दाङसे ढल्क मल्ह्वारा टक
टभुन,
एक्चो ऐया वइया नि कठो
ना एक्चो रिसिठो
मन टुहाँ कठ्याक रुइठुइ
पल्कम एक बुन्डा आँस नि डेखिठो
अइ थारु,
का टुँ पान्डन हुइटो ?
टुँ
हर पुजैयम छेग्रि, भेँरि बन्ठो
जसिक कि
अठ्ठाइस सल्लोक पुजैयम बुटन
बावन्न बैसठ्ठीम
डसैह्या मुर्घि,
टुहाँ रक्टक खोल्ह्वा बहठ
कहो थारु टुँ का पैठो ?
टभुन चुमाइल पलि रठो
अइ थारु,
का टुँ पान्डन हुइटो ?
यिहाँ,
जान्क किउ नि डेठा
यिहाँ,
माङ्क किउ नि डेठा
कलसे अछ्न पर्ठा
आपन ह बचाइक ला फे ।
अइ थारु,
टुँ ट
भ्याँवसे मिट लगाइ सेक्ना दङ्गिशरनके सन्तान
उहमार
अछ्नो आपन अधिकार
यिहाँ माङ्क किउ पानी नि डिह
कलसे अधिकार डेना बाट नि आइल
सत्ता डेना बाट नि आइल,
सक्कु बाट पटा रटि रटि
अधिकारक पानी नि पाक पिअस्ल रटि रटि
कसिक टुँ चुमैल रह सेक्ठो
अइ थारु,
का टुँ पान्डन हुइटो ?
२०८२ जेठ ३१ गते ठुम्रार साहित्यिक बखेरी, कीर्तिपुरिक् १०५औं भाग मे वाचिट कविता
प्रकाशित:
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