सत्यनारायण दहित
मै बयालसंगे
उरटुँ पटंगाहस्
बिना लक्ष्यके
बस उरटुँ
उरटुँ पटंगाहस् ।
मै ठिरमान होके एकनाससे
अपन सुरमे उरे खोजटुँ
मने
ढकेलटा एक पाँजरसे सुखके बयाल
ओ
ढकेलटा डोसुर पाँजरसे दुःखके बयाल
पुँछि फरफरवैटि मै और उरटुँ
उरटुँ पटंगाहस् ।
बिह्रे मुना लजर
बस उरट डेखटा महिन
नै डेखठो मोर संघर्ष
नै डेखठो मोर हिम्मत
कब टे बयाल रुकजाइ
कब टे धागा टुटजाइ
मै कहाँ जाके गिरम
पटे नै हो
टबु मै उरटुँ
बस उरटुँ
पटंगाहस् ।
धनगढी, कैलाली
प्रकाशित:
४८९ दिन अगाडि
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२९ वैशाख २०८१
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